गुरूजी असित कुमार मिश्र जी के कलम से....
अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है....
कुछ दिनों से दिल्ली की एक शिक्षिका और दिल्ली भाजपा अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी जी का वायरल हुआ विडियो दिखाई दे रहा है। जिसमें दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में सीसीटीवी कक्ष के उद्घाटन समारोह में संचालिका शिक्षिका ने तिवारी जी का परिचय देते हुए एक गीत सुनाने का आग्रह किया है।इतनी सी बात पर तिवारी जी बुरी तरह डांटते हुए उस शिक्षिका को मंच से उतार देते हैं और प्रशासनिक कार्रवाई का 'आदेश' भी दे रहे हैं। उस शिक्षिका की लाचारी और उसके चेहरे पर आए खौफ़ की परछाई को सैकड़ों बार देख चुका हूँ। साथ ही जिस दीनता से वह मुस्कुराते हुए शायद साॅरी सर साॅरी सर कह रहीं हैं, यह मात्र एक भारतीय शिक्षक का ही वर्तमान चेहरा नहीं है, बल्कि यह पूरी शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा नीति और उस राष्ट्र का चेहरा है, जो "तस्मै श्री गुरूवै नम:" कहते नहीं अघाता। शिक्षा विभाग के सबसे छोटे अधिकारी एस डी आई से लेकर सांसद मनोज तिवारी तक सभी यही बर्ताव करते हैं एक शिक्षक के साथ।
तीन चार साल पहले एक परीक्षा सेंटर पर कक्ष निरीक्षक था मैं। इंटर की बोर्ड परीक्षा थी एसडीएम साहब मेरे कमरे में घुसे और पहला सवाल मुझसे ही - तुम कौन हो?
मैंने बताया - सर! मैं कक्ष निरीक्षक असित कुमार मिश्र।
उन्होंने पूछा कि क्या पढ़ाते हो तुम ?
मैंने कहा - सर! जब मैंने बताया कि कक्ष निरीक्षक हूँ तो कृपया 'आप' कहिए मुझे।
सर बिगड़ गए - जानते हो कौन हूँ मैं... सस्पेंड हो जाओगे... वगैरह वगैरह।
मैंने कहा शायद आप नहीं जानते कि शिक्षक हूँ मैं और पाँच साल दस बच्चों पर मेहनत करूंगा तो दसों को डी एम बना दूंगा और उस दिन यही सस्पेंड वाली धमकी आपको मैं दूंगा...
बात खत्म हो गई उनका जो होना था हुआ होगा मैं आज भी ड्यूटी पर तैनात हूँ। दरअसल अध्यापक के मुख पर जो स्वाभिमान होना चाहिए जो पद गौरव होना चाहिए वह न राज्य सरकारें चाहती हैं न अभिभावक न खुद शिक्षक। पहली बात तो उस शिक्षिका को चाहिए था कि उसी मंच पर आदरणीय तिवारी जी को खींच कर एक थप्पड़ मारतीं। बहुत होता तो नौकरी चली जाती। कम से कम अध्यापक के साथ सदियों तक एक सांसद तमीज़ से पेश तो आता....
दूसरी बात मनोज तिवारी जी से। आज आपको सांसद की मर्यादा का बोध हो रहा है? और तब कहाँ थी यह मर्यादा जब जूलिया और नेहवा की पतली कमर में हाथ डाले आप 'बगल वाली जान मारेली' गा रहे थे! गीत को छोड़कर अगर आपका मूल्यांकन किया जाए तो कुछ भी नहीं हैं आप। सांसद तो 'बाई लक' बने हुए हैं आप। जैसे गोविंदा बन गए राम नाईक की जगह, जैसे अमिताभ जी बन गए बहुगुणा जी की जगह। जब पूरा देश नोटबंदी के समय लाइन में खड़ा था तो हमारा मजाक उड़ा रहे थे आप। तब इस सांसद पद की मर्यादा का बोध नहीं हुआ?
एक तरफ देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि वृक्षों पर जब फल लगते हैं तो वह झुक जाता है और दूसरी तरफ आपका इतना अहंकार कि छोटी सी बात पर एक अध्यापक को मंच से उतार दिया। जिसने आपको सम्मान सहित आमंत्रित किया उसी की बेइज्जती? अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन होता है यह पढ़ा ही था आज प्रत्यक्ष भी देख लिया।
याद रखिएगा सांसद महोदय एक चाणक्य सैकड़ों चंद्रगुप्त पैदा करके उसे राजभवन भेज सकता है लेकिन लाखों राजभवन मिलकर भी एक अध्यापक नहीं बना सकते। अध्यापक की इज्जत करना सीखिए तिवारी जी, मंच पर आसीन करना हर युग का चाणक्य जानता है और मंच से उतारना देश की जनता बखूबी जानती है।पूर्ववर्ती सरकारों के अहंकार और जनता के अपमान करने का परिणाम सामने ही है। इतिहास बनाने की जल्दबाजी में इतिहास ही न बन जाइए...
असित कुमार मिश्र
बलिया
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