Friday, 13 April 2018

नारी अत्याचार को चरित्रार्थ करती…. पुष्यमित्र उपाध्याय की कविता

नारी अत्याचार को चरित्रार्थ करती….
            पुष्यमित्र उपाध्याय की कविता

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे |

छोडो मेहँदी खडक संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे|

कब तक आस लगाओगी तुम,
बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो
दुशासन दरबारों से|

स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे|

कल तक केवल अँधा राजा,
अब गूंगा बहरा भी है
होठ सी दिए हैं जनता के,
कानों पर पहरा भी है|

तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे|

                       -पुष्यमित्र उपाध्याय

4 comments:

  1. Have written something on the current state of this society and also the state of my mind. Hope u like it.

    *बस और नही अब रण होगा*

    धृतराष्ट्र नहीं अब हम सबको भीमसेन बनना होगा,
    हर इक दुर्योधन की जंघा पर भीशण प्रहार करना होगा

    इतिहास तुम्हें न क्षमा करेगा जो तुम सभा में मौन रहे,
    हर द्रौपदी की लाज की रक्षा का ज़िम्मा अब लेना होगा

    हर आंख जिसमें हो हवस भरी, वह न फिर कुछ देख सके,
    बन के वीर अर्जुन अब तुमको गांडीव भी धरना होगा

    घात लगा कर, हर मोड़ पे, इंतज़ार में कौरव दल...
    न परवाह कर, अभिमन्यु बन
    हर चक्रव्यूह तोड़ना होगा

    कब तक समाज की बहू बेटियां डर डर कर हर सांस भरें,
    खुद को ही अवतरित करके
    चिर अभयदान देना होगा

    कलयुग के इस कुरुक्षेत्र में हो तुम किसके साथ खड़े,
    अन्याय सहो या बदला लो, यह निर्णय अब करना होगा

    न गीता का उपदेश, न ही खुद भगवान तेरा रथ खीचेंगे,
    इस युग में अपने रक्त से ही नव महाग्रंथ रचना होगा

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