पचास रोपे आटा चाउर
साठ रोपे तरकारी बा
तवातिया दहेजुआ बाइक
बिना तेल के गाड़ी बा
घर चलsता कर्जे कर्जे
देह प खाली उधारी बा
बड़ी बेरोजगारी बा हो
बड़ी बेरोजगारी बा।
मंगल ग्रह से भी दूर
नौकरी हई सरकारी बा
आदिमी के साला भेलू ना
पईसा के मारा मारी बा
मुअल भइल सास्ता मर्दे
जियल बड़ी भारी बा
बड़ी बेरोजगारी बा हो
बड़ी बेरोजगारी बा।
सय के उपर गमछी बा
हजार के एगो साड़ी बा
जहिया से दारू बन भइल
ई महंगा भइल ताड़ी बा
जनता खेला खेल ता
सरकार बड़ी खेलाड़ी बा
बड़ी बेरोजगारी बा हो
बड़ी बेरोजगारी बा।
छूछे केहू पूछे ना
हट साला भिखारी बा!
पढ़ पढ़ के पागल भइनी
बेरोजगारी बड़ बेमारी बा
सोच सोच के ठनकता
माथा हमार भारी बा
बड़ी बेरोजगारी बा हो
बड़ी बेरोजगारी बा।
का करी हम का ना करी?
समे के बलिहारी बा
होता रोजे पर्चा लीक
केकर ई जिमेदारी बा ?
कइसे होइ रिजल्ट भाई
बेकार के सभ तैयारी बा
बड़ी बेरोजगारी बा हो
बड़ी बेरोजगारी बा।
कलम कॉपी छूटल साथी
हाथ में अब कुदारी बा
मन करता आग लगाली
जरत रोज लुकारी बा
उपासे हमार आंगन बा
उपासे घर के हाड़ी बा
बड़ी बेरोजगारी बा हो
बड़ी बेरोजगारी बा।
जनता जइसे बानर भालू
नेता बनल मदारी बा
जइसन बारे नेता
ओइसन देस के अधिकारी बा
चुप्पे आदमी बोलत नइखे
सहते नु बरियारी बा
बड़ी बेरोजगारी बा हो
बड़ी बेरोजगारी बा।
किसान के छाती फाटता
कमजोरन के लाचारी बा
नेता मरदे बोली बेचे
देस के बयपारी बा
बइठ जा मैकश चुप होजा
इहे में समझदारी बा
बड़ी बेरोजगारी बा हो
बड़ी बेरोजगारी बा।
- मिथिलेश मैकश
छपरा
*बेराजगारी के आलम को…*
*कवि ने शब्दों मे उकेरने का अच्छा प्रयास किया है*
*क्या आलम है जरा पूछो तो उस बेरोजगार से*
*टकटकी लगाए पूछता है हर एक सरकार से*
*कविता सुनने के लिए नीचे के लिंक पर जाए*
https://youtu.be/zBNBKjB7WEU
कविता के कुछ अंश… इस प्रकार है
जनता जइसे बानर भालू
नेता बनल मदारी बा
जइसन बारे नेता
ओइसन देस के अधिकारी बा
चुप्पे आदमी बोलत नइखे
सहते नु बरियारी बा
*बड़ी बेरोजगारी बा हो*
*बड़ी बेरोजगारी बा।*
*कविता अच्छी लगे तो*
*इस टीम द्वारा की गई मेहनत को…..हौसला अफजाई के लिए*
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