चले के गुड्डी उड़ावे !!
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"खिचड़ी कहिया बा ? "
छठ के बिहाने भईले , मलुआ से राजवा पुछलस।मलुआ कहलस की "परसाल के नियन लागत बा की अबकियो खीचड़ी दु दिन मनि, 14 जनवरी आ 15 जनवरी। चल जेतने लेट होइ ओतने मजा आई। बसिअउरा उड़ावे के एक दिन आउर टाइम मिली।
राजवा के घर ,हमरा घर से बगले मे पड़ी।लइका बड़ी गुड्डी उड़ावे के शोखीन ह ,आ गुड्डी के नस नस बड़ी बारीकी से जानेला। एगो आउर लइका बा ,जवना के नाम राजेश ह ,बाकी दुलार से सभे "दहिया" कहेला ओकरा के। इ दुनु लइकन के, गुड्डी उड़ावे मे जवाब नइखे।
हमरा याद बा की आज के पतंगबाजी ,आ पहिले के पतंगबाजी मे बड़ी अंतर हो गइल बा। पहिले हमनी के गुड्डी उड़ावे मे जादा खरचा ना रहे ..मिला जुला के 10 रुपया मे सभ काम हो जात रहे ।
₹ 5.00 रुपया मे एगो मजदूर छाप के तागा के पैकेट ,जवना के हमनी के #बेलचा कहत रही स।
₹ 2.00 रुपया मे ,एक रुपया के सबुरदाना आ एक रुपया के अररोट, टुन्नू भइया के दोकान से।
₹ 0.50 पैसा (अट्ठनी)×3=1.50 रुपया , के हिसाब से 3 गो छोटकी गुड्डी ,अब्दुल अंसारी के ।
बचल ₹1.50 रुपया के 2 गो बड़की तिलंगी जवना के हमनी के #पंडारा कहत रही सन, उहो अब्दुल अंसारी के ।
कुल मिला के ,₹10 दस रुपया के सामान खरीदे के पड़त रहे।अब मांझा बनावे खाती, बाकी सामान जोगार कर ली सन। जइसे अररोट,सबुरदाना त किना के आइये गइल,अब बाकी सामान जइसे...एगो चूल्हा के जरूरत पड़े काहे से की घर के लोग चूल्हा पे इ सब बनावे ना देबे त...3 गो इटा के जोगार करी सन आ तीनो इटो के सटा के चूल्हा जइसन बना ली सन। अब चुकी घर के लोग एतना दानी ना रहे की चलs लइकावा के एगो बर्तन देदि की ओहमे मांझा बना लेबे...त आदमी का करे की कहीं से पिपर गाछि प के टाँगल मेटा उठा लि सन ,आ चाहे कहीं खाली पेंट के डिब्बा मिल जाये त ओकरे के उठा ली सन ,, ना त अंतिम मे काली माई के मन्दिर से चढ़ावल कराह उठा ली स..कह के की हे ! भगवान गलती सलती माफ करीहs ,आ जवने मिलल बर्तन ओकरे के आंच प चढ़ा दि सन। अब जरावन कहाँ से आवे त बड़ी सिम्पल रहे ...त एने ओने जहें टुटल प्लास्टिक के चप्पल मिल जाये ,ओकरे के आपन LPG समझ के आगि जोड़ दी स। 3-4 गो चप्पल मे त ,आराम से मांझा बन जात रहे।
अब एने मांझा बनावे के तैयारी चलत बा ..लेप गाढ़ा होता ..
आ दु जाना भाई लोग शीशा खोजे गइल बारन लो...ओह घरी गलती से कहीं ललटेन के शीशा मिल जाये त ,ओईसे खुशी मिले जइसे आज के समय मे ,कहीं कैश के साथ खाली ATM मिल जाये। शीशा के कई तरह के क्वालिटी होला ...ललटेन के पिसला प मोट होला आ टाइम लागेला...मरकरी आ बोवल मिल जाये त तनि कम समय लागेला आ महींन भी होला पिसला मे। सबसे बेसी खोज होत रहे गाय के मारे वाला सुई के ,जवना के सन्तोष भइया अपना बिशुखल गाय के सुई मारत रलन दूध बेसी करे खाती। त बड़ी निहोरा करी सन की ," ए सन्तोष भइया सुईया मार के नु ,शिशिया हइ छजिया के ऊपर रख दिहा...बहरी मत फेखिह हमनि के बिन लेम सन।"
अइसे-अइसे करके ,हमनी के शीशा जोगार करत रही सन।अब शीशा के जोगार हो गइल त ओकरा के पिसे खाती सिलवट काहां से आये, त कही इनार के पाका देख के चाहे , आपन छत के ऊपर, माइ से लुका के घर से, लोढ़ा लिया के ,घर से चुपे चोरी पिस के ,पानी से लोढ़ा धो के ,आराम से फेर घर पे रख के, टप से बहरी भाग जाइ स ,जाहां मांझा तैयार होता भा लेप बनत बा।
शीशा के महीन पिस के आ बाबा के सुति के धोती के फार के ,ओहिमे 4 -5 बार झाड़ लिहि सन ,की जवना से शीशा एकदम आटा नियन मोलायम हो जात रहे । अब ओने लेप गाढ़ा होता , लेप मे सबुरदाना ,अररोट,शीशा के अलावा तनि उसिनल चाउर, तनि चुड़ा, तनि बबुर के लासा भी डाल देत रही सन की ,लेप खूब गाढ़ा बने आ शीशा के सटवले रहे। मोहन के जादू रंग के दुगो रंग के पुड़िया खरीद लिहि सन..काहे से की अलग अलग रंग मे लटाइ बड़ा अच्छा लागेला। ललका रंग के काम त घर के अलता से हो जात रहे।
अब जइसही लेप बनल की पांच को जन जुट जइहे...ओमे 3 जाना पइसा फेटले बारे आ 2 जाना मंगनी के जोगार के फेरा मे लागल बारे...उ कइसे कहिहैं,"ए भाई हमार एकहि छोटका टोटा बा , तनि मुनि तागा बा उ त जवन लेदी बची नु हमार ओकरे से काम हो जाई"। #लेदी, लाटाइ प मांझा चाढ़ावत बेरी जवन तागा मे चुके ,आ हाथ मे से भुइयां गिर जाला ,ओकरे के कहल जाला,रसायन शास्त्र के भाषा मे एकरा के #गैंग भा #धातुमल कहल जाला।
अब ओहिमे जे तनी दिमाग वाला होलन, उ कहे लन की ए मरदे ललका आ पियरका रंग के मिला देला प ,कवन रंग होई..एगो काम करे के, दुनु रंग के मिला के लेप बनावा....दुनु रंग मिला देहल जाला..आ जब रंग बैंगनी आ करिया हो जाला त लेपी के..बाहुबली के खोजाहट होखे लागेला...लेपल बहुत भारी काम नइखे... बाकी अगिला दिन जब स्कूल मे माट साहेब ,लाल रंग मे रंगल हाथ देखिहे ,त उनकर आँख लाल हो जाला...आ मांझा के साथ साथ ,बबुआ के गाल भी लाल हो जाला....ओरहन त अलगे बा....आ बाऊजी के सखुआ के छड़ी अलगे बा।
सभ कुछ भइला के बाद आदमी चल देबे अब ,दियर मे नदी किनारे तागा सुखावे ....इहे एगो जगह रहे जाहां कवनो गुड्डी ना काटे ,आ नियम रहे की खेत मे केहु .....केहु के गुड्डी ना काटि...दूध भात रही सभके।
सच मे बड़ी याद आवेला हमनी के गुड्डी के दिन ...जब भइया गुड्डी लूट के लियावस आ हम धीरे से उड़ा उड़ा के कट जाइ। दिनभर आसमान मे ऊपर ताकत ताकत, मुहं बानर नियन करिया हो जाये ।माई खाएक लेके खोजत रहे ,आ हमनी के बिना खइले पियले कबो इ छत ..त कबो उ छत फानत रही सन।बड़ी याद आवेला गौरी चा के,अजय भइया "मुखिया" के ,जिनका डर से हमनी के ,गुड्डी ना उड़ावि सन ,काहे कि जब इ गुड्डी उड़ावत रहस लो ,त बस इनका सोझा जे भी आये ,एके हालि मे गुड्डी बाकाटा हो जाये। #बाकाटा_है एगो के जीत के पर्याय ह..जइसे #आर्कमिडीज_के_यूरेका_यूरेका फेमस ह , अंग्रेजी मे #bravo_bravo लोग कहेला ओसही बाकाटा है...गुड्डी के काट के फतेह हासिल करे के शब्द ह।
गुड्डी के कई प्रकार रही सन। जइसे- #तिर_गुड्डी, मतलब अगर गुड्डी के रउवा जवना तरीका से जवना दिशा मे अगर अपना मन से घुमा लेम त उ गुड्डी के #तिर कहल जाला। लोग तिर गुड्डी के पहचाने खाती गुड्डी के बीचो बीच बड़ी, प्यार से हाथ फेरेला ,जैसे कवनो कबूतर पे हाथ फेरल जाला..अगर गुड्डी दुनु साइड बराबर मात्रा मे दबि ,त ओकर मतलब होला की गुड्डी तिर बिया ,मनगर बिया, चोख बिया। केतना लोग पीछे पाख देख के भी ,बता देबेला की गुड्डी तिर बिया की ....चोर बिया।
#चोर_गुड्डी, तिर के उल्टा होले। इ अपना मन के होले आ उड़ावे आला के दिमाग खराब कर देबेले। लोग चोर गुड्डी के ,छोट लइका के देबेला की ले बउआ उड़ाव गुड्डी।
#लटखाह_गुड्डी, इ गुड्डी आसमान मे अपने मने कबो गोल गोल घुमे लागि ,त कबो हेने भागी त कबो होने भागी। त कबो सुखोई के जइसन सीधे नीचे पलटी मारी आ जाके कवनो के एंटीना मे फस जाई। एंटीना मे फसते ओ एंटीना आला के खुसी के सीमा ना होला...उ एतना खुश हो जाला जइसे अक्टूबर 16 मे, जिओ के सिम मिलला के खुशी रहे । अब एंटीना आला पीछे तकबे ना करी ,आ गुड्डी के तागा से कनेक्शन टूटे के इंतज़ार करि ...की जइसे टूटे हम गुड्डी उतारी।
गुड्डी लूटे खाती एगो देशी यन्त्र बा अपना साइड जवना के लोग #लग्गी कहेला। सेल्फ़ी स्टिक के बड़ भाई ह। अगर गुड्डी कट के नीचे गीरत बिया आ लग्गी आला लग्गी छुआ के #लूटा_है बोल देबे त ...गुड्डी प ओकर सांविधानिक हक हो जाला।
गुड्डी के बारे मे लिखल जाव त शब्द कम पड़ी हमरा खाती...बाकी एतने कहेम की आज के जवन पतंगबाजी होता ...बिल्कुल बदल गइल बा। सभ कुछ चाइनीज हो गइल बा। लटाइ तागा से लेके ...गुड्डी तक सभ प्लास्टिक आ सभ के सभ महंगा। बढ़िया से उड़ावे मे 500 रुपया लाग जाइ आज के समय मे। सभ रेडीमेड बा..सब बनावटी ।ओहमे खुसी ओतना नइखे जवन खुशी ,अपना हाथ से बनावे मे रहे।
लोगन के हाथ त हाथ, गर्दन कट जाता चाइनीज तागा से। कवनो चिरइ मर जात बारी स ,चाइनीज तागा से कट के। छोट लइका तागा खिचे के चक्कर मे ,हाथ छिल लेत बारन स। बहुत बहुत तरह के उल्टा समाचार सुने के मिलेला ।
रावा लोगन से निहोरा बा की अच्छा से पतंगबाजी करी,गुड्डी उड़ाई,तिलंगी उड़ाई। खूब दही चुड़ा खाई । कवनो तरह के हताहत के सूचना ना हो। खिचड़ी मंगलमय हो। बाकी जय हो।
#मिथिलेश_मैकश
#लिखी_भोजपुरी_पढ़ी_भोजपुरी
#रउवा_बढ़ब_बढ़ी_भोजपुरी
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