रउरा सुबिस्ता खाति बनल ई तंत्र
ए तंत्र के जै जै बोलीं ....
चाहे केहु के मार दी गोली
ए तंत्र के जै जै बोलीं
जनता बुरबक हुशियार के बा ?
जे मन करे करs देखनिहार के बा ?
चाहे रात के बएल खोलीं
ए तंत्र के जै जै बोलीं
केहु ना खोखी ई मनसोखी प
ले चलs राइफल के नोखी प
दिने दोपहर उठा ली डोली
ए तंत्र के जै जै बोलीं
गलती से तनि जे धरा जाई
जे सामने आई कचरा जाई
चुप रही जे जनता भोली
ए तंत्र के जै जै बोलीं
जे अलग बोली छाटल जाई
चुप रहs जीभ काटल जाई
गणतंत्र बितल आवता होली
ए तंत्र के जै जै बोलीं
हाला होता गईया-बाछी प
संविधान सिद्धांत गाछी प
पाप-पुन के फिकिर कइसन ?
जाई ! गंगा जी मे धो लीं
ए तंत्र के जै जै बोलीं
- सुधीर पाण्डेय मिथिलेश मैकश
No comments:
Post a Comment