माई के छब्बीस जनौरी
एक दिन माई से पूछनी
कि माई ! ते ना मनावेलीस
छब्बीस जनौरी ?
तोरा मन ना ह ?
तहनी के ना बुझाला
छब्बीस जनौरी ?
माई ओतना ना सोचेले
जेतना हमनी के सोचिला सन
माई हँस के कहलस
छनवटा के कढ़ाही से निकाल के
ते पुआ खा ले , उहे ह हमरा खाती
छब्बीस जनौरी
ले हई एगो आउर पूरी
गरम बा मोलायम बा
इहे ह छब्बीस जनौरी
बेटा तहनी खाती साल में
एक हाली आवेला छब्बीस जनौरी
हमनी के जिनिगीये बन गइल बा
छब्बीस जनौरी
घर में भोरे से साँझ ले रोज
छब्बीस जनौरी
कपड़ा फिचे से गोते ले रोज
छब्बीस जनौरी
हमनी के देखे वाला के बा
तोरा खाती ह छब्बीस जनौरी।
देख!! हई तेल में कइसे
जरता छब्बीस जनौरी ?
एगो घर में साठ बरीस से
कइसे रहता छब्बीस जनौरी ?
तोरे चिंता में डूबल रहेनी जा
तेही हई हमार छब्बीस जनौरी
सबसे बेसी तोरा के माने वाला
तोर माई आ तोर बाबू हवे
छब्बीस जनौरी।
आज माई खाती एगो
नया साड़ी लिआ देती
त ,माई खाती बुला
इहे ह छब्बीस जनौरी
एगो हाथ में दुगो चूड़ी
दोसरका हाथ खाली बा
जे दुनु हाथ भर जाइत नु
त ,माई खाती बुला
इहे ह छब्बीस जनौरी
दिनभर एने ओने जे घूम तानी
आज माई भीरी दिन भर
ओकरा से बतिअइती नु
त ,माई खाती बुला
इहे ह छब्बीस जनौरी
आज ले माई से
रोजे कुछ ना कुछ मंगनी
आज बिना माई के मंगले
माई के कुछ लिआ देती नु
त ,माई खाती बुला
इहे ह छब्बीस जनौरी
- मिथिलेश मैकश
छपरा
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