Friday, 28 December 2018

बस माई चाही

बीस बरिस पहिले के उ लईकाई चाही
जब आदिमी कहत रहे बस माई चाही
जे समे माई से बड़, ना कवनों धन रहे
माईये साँस आस,माईये पानी अन्न रहे
माईये मजगुति , माईये घर आधार रहे
माईये से पलिवार ,माईये से संसार रहे
कहीं से आई, माईये के मन जोहत रहे
हम लेटात रहनी , माई रोजे धोवत रहे

ते बारी त सब बा, अदिमी बा सरग में
ते ना रहबे,  त दोसर के पूछी जग में ?
तोर आसीर्बाद बेदाम काजू बा रे माई
तनी छू दे तोरा हाथ में जादू बा रे माई
तोरा  जान में  हमार जान रहे
ई जान से बस अब, इहे चाही
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

(छठ के ठेकुआ, गाँव से दूर एगो मजूबर आ मजदूर अदिमि के आपन बात...बुला असवो घरे ना आ पाइब छठ में😢😢)

ठीक ना लागेला....

ठीक ना लागेला....

ना खटिया,ना ओरचन पाटी
ना दुआरे खोप, मरई, टाटी
ना आँगन, बिनु गोबर माटी
ठीक ना लागेला.....

ना खेतिहर, हर, ना हरवाही
ना तसला, कठवत, कड़ाही
ना फूलहा ना घर में सोराही
ठीक ना लागेला.....

ना खेत,ना रोपाई ना कटनी
ना सोहाई, बोवाई ना पटनी
ना सतुई ना आमे के चटनी
ठीक ना लागेला.....

देखs खाए पिये में कंजूसी
खाली दोसरा  के  चपलुसी
बेखदी मदी के रूसा रूसी
ठीक ना लागेला.....

अगराईल,धधाईल,छहकल
हरफड़ाइल मन के बहकल
ढ़ेर बेजाएं  आ ढ़ेर सहकल
ठीक ना लागेला.....

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

Monday, 24 December 2018

आज का दौर

ये 2018 का दौर है....ये दौर है, मैग्गी माइंडेड लोगों का। जहाँ पब्लिक के पास मात्र दो मिनट है पब्लिक के लिए। जहाँ 1 मिनट 31 सेकेंड होते ही जनता 100 डिग्री सेल्सियस के ताप पर बॉयल होना शुरू कर देती है और 1 मिनट 59 सेकेंड होते ही रिलेशन का ताप शून्य से नीचे चला जाता है।

ये दौर है मल्टीटास्किंग का, रजनीकांत का.. जहाँ राइट हैंड से डिनर करना है तो लेफ्ट हैंड से मोबाइल सेट पकड़ना है,एक कान से इयरफोन से सुनना है तो दूसरे कान से लोगों को सुनना है। ये दौर है एक्ट्रीमली हेक्टिक शेड्यूल का जहाँ बाईक पे पीछे बैठ के व्हट्सएप, फेसबुक रिप्लाय करना है तो मेट्रो में खड़े खड़े डेटा ट्रांसफर करना है, एंड्रॉयड अपडेट करना है। ये दौर कॉन्टेक्ट्स सेभ करने का दौर है, वीडियो सेभ करने का दौर है...लाइफ सेभ करने का नहीं।ये दौर है, दौड़ने का.. जहाँ रुकना मना है और सुबह से शाम तक भागना है।

हम उस दौर में जहाँ सभी अपने भी है और कोई अपना भी नहीं है। ये वक़्त है उस दौर का जहाँ बात बनाने के लिए हजारों बातें हैं और दिल बहलाने के लिए एक भी बात नहीं है। ये दौर है गिरगिट का, कलर चेंजिग का,टोपी पहनाने का, हुशियारी का, अपना उल्लू सीधा करने का। जहाँ मुफ़्त में लोगों को हर चीज चाहिए और क़ीमत में कुछ नहीं। ये दौर है निठल्लेपन का, जुमलेबाजी का,बात बेचने का  और सपने बेचने का। ये दौर चोर का है, शोर का है। जहाँ करने को कुछ नहीं है और हल्ला करने को बहुत कुछ है।

ये दौर है छद्म देशभक्ति का, शो ऑफ का, मार्केटिंग का, बिजनेश का,रुपये का। जहाँ फ्लैग और स्वैग पे राजनीति है और बिल्ली आराम से दूध पीती है। ये दौर लस्सी, छाछ, जूस का नहीं, चापलूस का है। ये दौर है, मुद्दे का ,विषय का, जहाँ एक भी विषय नहीं है मुद्दे का।

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

Tuesday, 13 November 2018

बाबा ! आज रहतऽ त केतना आछा होइत

#बाबा_आज_रहतऽ_त_केतना_आछा_होइत
_________________________________

कहीं से अइतऽ त दू चार गो पाई देतऽ
रोवती तऽ चुप कराये ला मिठाई देतऽ

घुघुआ  माना  खेलइत अपना गोदी में
बइठाके हाथे खिअइत अपना गोदी में

कइसे भुलाई केतना हमें मानत रहलऽ
ठंडा लागत रहे त गाती बान्हत रहलऽ

हम जानीले हमें छोड़ के ना जइबऽ तू
हमरा बिस्वास बा कि  फेरु अइबऽ  तू

बजारी से जाके एगो पुतुल लिया द तू
सोनचीरईया के , काथा फेर सूना द तू

तहार सनेह के भाषा हम पढ़ ना पवनी
अखरेला कि जादा कुछ कर ना पवनी

काश जवन सोच तानी फेर से साचा होइत
बाबा ! आज  रहतऽ त केतना आछा होइत

Sunday, 11 November 2018

माँ - माई

बीस बरिस पहिले के उ लईकाई चाही
जब आदिमी कहत रहे बस माई चाही
जे समे माई से बड़, ना कवनों धन रहे
माईये साँस आस,माईये पानी अन्न रहे
माईये मजगुति , माईये घर आधार रहे
माईये से पलिवार ,माईये से संसार रहे
कहीं से आई, माईये के मन जोहत रहे
हम लेटात रहनी , माई रोजे धोवत रहे

ते बारी त सब बा, अदिमी बा सरग में
ते ना रहबे,  त दोसर के पूछी जग में ?
तोर आसीर्बाद बेदाम काजू बा रे माई
तनी छू दे तोरा हाथ में जादू बा रे माई
तोरा  जान में  हमार जान रहे
ई जान से बस अब, इहे चाही
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

(छठ के ठेकुआ, गाँव से दूर
एगो मजूबर आ मजदूर अदिमि के
आपन बात...बुला असवो घरे ना आ पाइब छठ में😢😢)

Wednesday, 24 October 2018

जय होखे सरकार के.......

बम्बे दिल्ली भागत भागत
जनता थाकल हार के
बन्दा धंधा का करी ? 
ना सोर्स बा रोजगार के
निंन में सरकार बिया
यू पी भा बिहार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

देसे में निकासी होता
काड़ल जाता मार के
बढ़िया से स्वागत होता
गंगा जल से ढार के
दवा बीरू होता देखs
दरद आ बोखार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

गारी सुने गरजे आदमी
चलत बा सम्हार के
छाती भारी भइल बा
नस फाटता कपाड़ के
मातल बारे नेता लो
अंग्रेजी दु पेग मार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

केकर सवख लागल बा?
जे छोड़े घर परिवार के ?
पेट के आग बुतावल जाता
आँखि से लोर ढार के
ऊँख नीयन पेरा त लो
नेमु के जइसे गार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

छोड़ के काहे जाएब हम
इंहा बात बा संस्कार के
संविधान से बड़का केहू ना
हम छोड़ब ना अधिकार के
बांध के इंहा लिलारी घूमेम
ललका गमछा झाड़ के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

सरकार से निहोरा बा
कुछ करे हई रोजगार के
भाषण बाजी बन करा
अंग्रेजी चार लाइन मार के
ठीक ना लागे आदिमी
घूमsता हाथ पसार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

- मिथिलेश मैकश
   छपरा

Wednesday, 17 October 2018

जदि हम ना रहब, त ई भोजपुरी चली कइसे ?

कुछ लोग सोचता कि दाल हमार गली कइसे ?
जदि हम ना रहब, त ई भोजपुरी चली कइसे ?

केहू अपना के भिखारी ठाकुर से बड़ जानता
त केहू अपना के महेंद्र मिसिर से बड़ मानता
इंहा भोजपुरी के कर्ता - धर्ता के लमहर लिस्ट बाटे
केहू बी ए एम ए त केहू भोजपुरी से मेडलिस्ट बाटे
ई मन के भरम  उनुका मन से निकली कइसे ?
जदि हम ना रहब, त ई भोजपुरी चली कइसे ?

केहु जियता इंहा भोजपुरी के गणित से
त केहु जियता भोजपुरी के राजनीत से
केहू भोजपुरी के जोखsता बटखरा आ तरजुई लेके
त केहू दिन भर इहे तुरपाई करता मेहीकी सुई लेके
ई महान लोग ना रहीहें  त कमी खली कइसे ?
जदि हम ना रहब, त ई भोजपुरी चली कइसे ?

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

Tuesday, 2 October 2018

#जिउतिया

#जिउतिया
----------------------------------

माई छठ भुखेले
दशहरो भुखेले
जिउतियो भुखेले
सुको भुखेले
प्रदोष भुखेले.....
पता ना का का भुखेले
केकरा खाती भुखेले ?

माई आज ले 
अपना खाती ना भूखलस
कबो लईका खाती
कबो परिवार खाती
खाली दोसरा खाती

माई भुखेले, काहे कि
ओकर भुखले में प्रेम बा
भूखले में सुख बा, संसार बा
त्यागे में ओकर जिनिगी बा
दोसरे में ओकर आपन बा

आज जिउतिये ना
ओकर जिनगी ह आज
हर बेटा के दिन ह
ओकरा माई खाती
हर माई के दिन ह
ओकरा बेटा खाती

बनल रहस बेटा  आ  बनल रहस माई
दुनु हाथ जोड़ी के जिउतिया के बधाई

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

Sunday, 2 September 2018

कबीर के दोहे - कबीर के प्रसिद्ध दोहे - Kabir ke dohe

प्रेम न बारी उपजे प्रेम न हाट बिकाय ।
राजा परजा जेहि रुचे सीस देहि ले जाय ॥

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||

सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराय |
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये |
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छावायें |
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ||

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय |
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ||

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ||

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोय |
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदुंगी तोय ||

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात |
देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों तारा परभात ||

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय |
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ||

मालिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार |
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ||

मन के मते ना चलिये, मन के मते अनेक
जो मन पर अस्वार है, सो साधू कोइ एक।
मन के मते न चलिये, मन के मते अनेक |
जो मन पर असवार है, सो साधु कोई एक ||
मन के मते न चलिये, मन के मते अनेक |
जो मन पे अवता नहीं, सो साधु कोई एक ||

मनवा तो पंछी भया, उड़ के चला अाकाश |
ऊपर ही ते गिर पड़ा, मन माया के पास ||
मनवा तो पंछी भया, उड़ के चला अाकाश |
ऊपर ही ते गिर पड़ा, यह माया के पास ||

यह मन तो पक्षी होकर भावना रुपी आकाश में उड़ चला, ऊपर पहुँच जाने पर भी यह मन, पुनः नीचे आकर माया के निकट गिर पड़ा|

माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।
आसा त्रिसना न मुई, यों कह गए कबीर ।

Kabir maya papini, Hari su kare haraam
Mukhi kari aayi kumati ki,Kaha na deyi raam

कबीर माया पापीनी, हरिसू करे हराम
मुखि करि आई कुमति की , कहा ना देहि राम

कबीर माया पापिनी, फंद ले बैठी हाट
सब जग तो फंदे परा, गया कबीरा काट।


कबीर कहते है की समस्त माया मोह पापिनी है।
वे अनेक फंदा जाल लेकर बाजार में बैठी है।

समस्त संसार इस फांस में पड़ा है पर कबीर इसे काट चुके है।


Kabir says all the illusions are vices, sitting with traps in the market
The whole world has been trapped but Kabir has cut the trap.


मेरा मुझमे कुछ नहीं , जो कुछ है सब तेरा । 
तेरा तुझ को सौंपते , क्या लागे है मेरा ।।

तेरा साईं तुझमे है,ज्यो पहुपन(फूल) में वास !
कस्तूरी का हिरन ज्यो फिर फिर ढूंढे घास
तेरा साईं तुझ में, ज्यों पहुपन में वास,
कस्तूरी का हिरन ज्यो  फिर-फिर सुंघै घास.

कबीरा गर्व न कीजिये, कबहू न हँसिये कोय |
    अाज ही नाव समुंद्र में, का जाने क्या होय ||"
"कबीरा गर्व न कीजिये, कबहू न हँसिये कोय |
    अजहू नाव समुंदर में, न जाने क्या होय ||"

Dont feel proud, dont mock at anybody.
Your life is like a boat in the sea, who can say what may happen at any time.
It is foolish to be proud or to laugh at the less fortunate.

कर्ता था तो क्यूं रहा , अब करि क्यूं पछताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अमवा कहाँ से पाय ॥

कबीर सो धन संचिये ,  जो आगे को होय।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देखा कोय।

जिही घट प्रीत न प्रेम रस, उनी रसना नहि राम।
ते नर इस संसार में, उपजि भये बेकाम।
जिस घट प्रीति न प्रेम रस, उनी रसना नहि राम।
ते नर इन संसार में, उपजि भये बिन काम।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।

ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ में है, जाग सके तो जाग। ।।

जहाँ दया वहाँ धरम है, जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा वहाँ आप। ।

जो घट प्रेम न संचरे, सो घट जान मसान।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्रान।

जल में बसे कुमोदिनी, चंदा बसे आकास।
जो है जाको भावता, सो तांही के पास। ।।८७।।
जल में बसे कुमोदिनी, चंदा बसे आकास।
जो है जाकी भावना, सो तांही के पास। ।।८७।।

जात न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान। ।।६५।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।।

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अगर अपने मन में शीतलता हो तो इस संसार में कोई बैरी नहीं प्रतीत होता।

अगर आदमी अपना अहंकार छोड़ दे तो उस पर हर कोई दया करने को तैयार हो जाता है।


ते दिन गए अकारथी, संगत भई न संत।


प्रेम बिना पशु जीवना, शक्ति बिना भगवंत। ।

तीरथ गए ते एक फल, संत मिले फल चार।


सतगुरू मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।

तन को जोगी सब करें,मन को विरला कोय। 


सहजे सब विधि पाईए, जो मन जोगी होय।


प्रेम न बारी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाए।


राजा परजा जोहि रूचे, सीस देहि ले जाए। ।


प्रेम न बारी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाए।


राज परजा जेहि रूचे, सीस देहि ले जाए। ।

जो घर साधू न पूजिए, घर की सेवा नाहीं। 


ते घर मरघट जान के, भूत बसे दिन माहीं। 


जिन घर साधू न पूजिए, घर की सेवा नाहीं। 


ते घर मरघट जान के, भूत बसे दिन माहीं। 

साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।


सार सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय।


साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।


सार सार को गहि रहे, थोथा देहि उड़ाय।

पाछे दिन पाछे गए, हरि से कियो न हेत।


अब पछताए होत क्या, चिड़िया चुग गई खेत। ।।२३।।


आछे दिन पाछे गए, हरि से किया न हेत।


अब पछताए होत क्या, चिड़िया चुग गई खेत। ।।२३।।

उजला कपड़ा पहव के, पान सुपारी खाहिं ।


एक हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि नाहिं


उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं ।


एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं

भावार्थ - बढ़िया उजले कपड़े उन्होंने पहन रखे हैं, और पान-सुपारी खाकर मुँह लाल कर लिया है अपना । पर यह साज-सिंगार अन्त में बचा नहीं सकेगा, जबकि यमदूत बाँधकर ले जायंगे । उस दिन केवल हरि का नाम ही यम-बंधन से छुड़ा सकेगा ।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरी हैं मैं नाहि।


सब अंधियारा मिट गया, दीपक देर का मांहि। ।।


जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरी हैं मैं नाहि।


सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा मांहि। ।।


जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरी हैं मैं नाहि।


सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा नाहि। ।।

नहाय धोय क्या हुआ, जो मन मैल न जाय।


मीन सदा जल में रहे, धोय बांस न जाय। ।।१३

प्रेम प्याला जो पिया, सीस दक्षिणा देय।


लोभी सीस न दे सके, नाम प्रेम का लेय। ।।

प्रेम भाव इक चाहिए, भेष अनेक बताए।


चाहे घर में बास कर, चाहे बन को जाए। ।।७८।।


प्रेम भाव एक चाहिए, भेष अनेक बनाए।


चाहे घर में बास कर, चाहे बन को जाए।

फल कारण सेवा करे, करे न मन से काम ।


कहे कबीर सेवक नहीं, चाहे चैगुना दाम।।

अर्थ :- कबीर कहते हैं कि मनुष्य सेवा मन से नहीं बल्कि फल प्राप्त करने की इच्छा से करता है।


परंतु सच्चा सेवक वह है जो निष्काम भाव से एवं बिना फल की आशा से सेवा करे।।


माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।


कर का "मनका" डारि के, मन का "मनका" फेर। ।

माया  छाया  एक  सी , बिरला  जाने  कोय  |


भागत  के  पीछे  लगे , सन्मुख  भागे  सोय  ||


A shadow and a delusion are alike. They chase them who run away and disappear from their sight that looks at them.

मन दीया कहुं और है, तन साधुन के संग।


कहैं कबीर कारी करि(हाथी), कैसे लागे रंग॥


मन दीया कहुं और ही, तन साधुन के संग।


कहैं कबीर कारी करि  कैसे लागे रंग॥


मन बिना कछु और ही, तन साधुन के संग।


कह कबीर कारी करि, कैसे लागे रंग। ।।



काया मंजन क्या करे, कपडे धोई न धोई |


उजल हुआ न छूटिये, सुख नी सोई न सोई ||


काया भजन क्या करे, कपडा धोई न धोई |


उजल हुआ न सूतिये, सुख नी साई न सोई ||


कागद केरो नाव दी, पानी केरो रंग |


कहे कबीर कैसे फिरू, पञ्च कुसंगी संग ||


कागद केरो नाव दी, पानी केरो रंग |


कहे कबीर कैसे फिरू, पञ्च कुसंगी संग ||


कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर-पीर |


जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ||

जाता है तो जाण दे, तेरी दशा न जाई |


केवटिया की नाव ज्यूँ, चढ़े मिलेंगे आई ||

कुल केरा कुल कूबरे, कुल राख्या कुल जाए |


राम नी कुल, कुल भेंट ले, सब कुल रहा समाई ||


कुल केरा कुल उबरे, कुल राख्या कुल जाए |


राम नी कुल, कुल भेंट ले, सब कुल रहा समाई ||

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर


आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी |


एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ||

कबीर सुता क्या करे , गुरू गोविन्द के जाए


तेरे सिर पर जम खड़ा , खरच काहे का खाए

तन को जोगी सब करें,मन को विरला कोय। 


सहजे सब विधि पाईए, जो मन जोगी होय। ।

नहीं शीतल है चन्द्रमा, हिम नहीं शीतल होय।


कबीरा शीतल , संत जन, नाम सनेही होय

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय,


ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय

शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान |


तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ||

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुंब समाय ।


मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

माखी (मक्खी) गुड़ में गड़ी रहे, पंख रहे लिपटाय,


हाथ मले और सिर धुने , लालच बुरी बलाय

सुमिरन मन में लाइए, जैसे नाद कुरंग |
कहे कबीरा बिसर नहीं, प्राण तजे ते ही संग ||

सुमिरन सूरत लगाईं कर, मुख से कछु न बोल |
बाहर का पट बंद कर, अन्दर का पट खोल ||

साहिब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय |
ज्यों मेहंदी के पात में, लाली रखी न जाए ||

संत पुरुष की आरती, संतो की ही देय |
लखा जो चाहे अलख को, उन्ही में लख जे देय ||

ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार |
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ||

हरि संगत शीतल भया , मिटी मोह की ताप
निशिवासर सुख निधि लहा अान के प्रगटा आप

कबिरा मन पंछी भया, वैसे बाहर जाय।
जो जैसी संगत करे, सो तैसा फल पाय।

कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार |
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ||

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय |
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ||

आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर
इक सिंहासन चढ़ी चले, इक बंधे जंजीर

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होय |
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||

रात गवाँई सोय कर, दिवसं गावँया खाय । 
हीरा जन्म अमोल सा, कौडी बदले जाय ।।

कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय |
भक्ति करे कोई सुरमा, जाति बरन कुल खोए ||

कागा का को धन हरे, कोयल का को देत |
मीठे शबज सुनाय के, जग अपनो कर लेत ||
कागा का को धन हरे, कोयल का को देय |
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ||

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पीछे फिर पछताओगे, प्राण जाये जब छूट

राम नाम की  लूट है  लूट सके तो लूट
अंत काल पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट

लकड़ी जल  कोयला भयी कोयला जल भयो राख
मैं पापिन एेसी जली , कोयला भयी ना राख

भगति भजन हरि नाव है, दूजा दुक्ख अपार ।


मनसा बाचा कर्मनां, `कबीरा’ सुमिरण सार 












































Thursday, 30 August 2018

मैं दूर रहता हूँ नजदीकियों से

मैं दूर रहता हूँ नजदीकियों से
क्योंकि कभी कभी
नजदीकियां स्वार्थ बन जाती है
रुठ जाती है, और
मजबूर कर देती है दूर होने पर।
नजदीकियों का एक वक्त होता है
एक वक्त के बाद दूर हो जाती है
नजदीक होना मतलब भी है
और दूर होना स्वार्थ भी है।

गम दूरियों का नहीं
नजदीकियों का होता है
इसीलिए कोशिश करता हूँ
जो नजदीक है, वो दूर न हो
और जो दूर है, फिर नजदीक न हो
क्योंकि
दूर होना नियति है और
ज्यादा नजदीक होना
दूर होने की स्थिति है।

फासलें बताते हैं
दूर कौन है?, नजदीक कौन है?
क्योंकि फैसलों से फाँसले होते हैं
और फासलों से फैसलें
नजदीकियां भ्रम पैदा करती हैं
नजदीक रहने वाले दूर हो जाते हैं
और दूर होने वाले बहुत दूर।

नजदीकियों और दूरियों के बीच
रहने की कोशिश की मैंने
पर हो न सका,
दूरी एक पल के लिए होती है
और नजदीकियां याद रहती हैं
सालों साल, जीवन भर
इसीलिए
मैं दूर रहता हूँ नजदीकियों से
मैं दूर रहता हूँ नजदीकियों से

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

Sunday, 26 August 2018

बहिन के जे कामे ना आईल, उ राखी कवना काम के ?

सुख में सँघाती, दुःख में बईसाखी होली
धरती पे बहिन, पूरनिमा के राखी होली
बरखा आईल बह गइल,
उ माटी कवना काम के ?
बहिन के जे कामे ना आईल,
उ राखी कवना काम के ?

हनुमान हिरदया,बहिन के तियाग देखऽ
जियत घर में, गंगा जमुना परयाग देखऽ
ना राखल जे मुँह के पानी
उ लाठी कवना काम के ?
बहिन के जे कामे ना आईल,
उ राखी कवना काम के ?

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

जियत रहस बहिन, जियत रहस भाई
रउवा सभे के राखी के, अनघा  बधाई

Monday, 20 August 2018

#घर_से_बेघर

#घर_से_बेघर
_____________________________

जिस दीवाल को घर बनते वक्त
हमने ढ़ोई थी कई कठरा बालू
कई कठरा गिट्टी और
सैकड़ो चिमनी के ईंटे।
नवनिर्मित उस दीवाल को
पौधों की तरह हमने पटाई थी
कई बाल्टियां पानी।

बड़ी बारीकी से हमने देखा था
सीमेंट बालू के मसाले में
पानी और पसीने का मेल।
बाबुजी का गणित
माँ की मेहनत
मजूरे की शक्ति और
राजमिस्त्री का साहुल।

बाबा भी घर बनाने के लिए
घर छोड़े थे
बाबुजी ने भी घर बनाने के लिए
घर छोड़ा था
मैंने भी घर बनाने के लिये
घर छोड़ा है
आज घर स्थिर है, हम अस्थिर
घर, घर पर ही है और
हम घर से बेघर।

पहले डर था, तो घर नहीं था
अब डर नहीं है, तो घर भी नहीं है
घर कोई छोड़ता नहीं है साहब
छूट जाता है
जैसे छूट जाता है बचपना
आ जाती है समझदारी
बढ़ जाती है जिम्मेदारी
छूट जाती हैं गलियां
छूट जाता है गांव

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

PC :Aditya Prakash Anokha