Monday, 20 August 2018

#घर_से_बेघर

#घर_से_बेघर
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जिस दीवाल को घर बनते वक्त
हमने ढ़ोई थी कई कठरा बालू
कई कठरा गिट्टी और
सैकड़ो चिमनी के ईंटे।
नवनिर्मित उस दीवाल को
पौधों की तरह हमने पटाई थी
कई बाल्टियां पानी।

बड़ी बारीकी से हमने देखा था
सीमेंट बालू के मसाले में
पानी और पसीने का मेल।
बाबुजी का गणित
माँ की मेहनत
मजूरे की शक्ति और
राजमिस्त्री का साहुल।

बाबा भी घर बनाने के लिए
घर छोड़े थे
बाबुजी ने भी घर बनाने के लिए
घर छोड़ा था
मैंने भी घर बनाने के लिये
घर छोड़ा है
आज घर स्थिर है, हम अस्थिर
घर, घर पर ही है और
हम घर से बेघर।

पहले डर था, तो घर नहीं था
अब डर नहीं है, तो घर भी नहीं है
घर कोई छोड़ता नहीं है साहब
छूट जाता है
जैसे छूट जाता है बचपना
आ जाती है समझदारी
बढ़ जाती है जिम्मेदारी
छूट जाती हैं गलियां
छूट जाता है गांव

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

PC :Aditya Prakash Anokha

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