Sunday, 11 November 2018

माँ - माई

बीस बरिस पहिले के उ लईकाई चाही
जब आदिमी कहत रहे बस माई चाही
जे समे माई से बड़, ना कवनों धन रहे
माईये साँस आस,माईये पानी अन्न रहे
माईये मजगुति , माईये घर आधार रहे
माईये से पलिवार ,माईये से संसार रहे
कहीं से आई, माईये के मन जोहत रहे
हम लेटात रहनी , माई रोजे धोवत रहे

ते बारी त सब बा, अदिमी बा सरग में
ते ना रहबे,  त दोसर के पूछी जग में ?
तोर आसीर्बाद बेदाम काजू बा रे माई
तनी छू दे तोरा हाथ में जादू बा रे माई
तोरा  जान में  हमार जान रहे
ई जान से बस अब, इहे चाही
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

(छठ के ठेकुआ, गाँव से दूर
एगो मजूबर आ मजदूर अदिमि के
आपन बात...बुला असवो घरे ना आ पाइब छठ में😢😢)

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