Monday, 25 September 2017

कुछ फूल हरे डालों के न जाने क्यूँ बिखर जाते है

भईया की एक रचना ,जिसे पढ़कर मुझे काफी सुकून मिलता है ..लभ यु भईया
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कुछ फूल हरे डालों के न जाने क्यूँ बिखर जाते है
कई साल न जाने कैसे कुछ लम्हों में गुज़र जाते है
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फ़र्क कल और आज में होता है कितना , ज़रा देखो
महसूस करके वो ख्वाब , जो निगाहों में नज़र आते हैं
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यादों के टुकड़े चमकते है मन के कोने - कोने में
जैसे  फर्श  पे  शीशे  के  टुकड़े  बिखर  जाते  है
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तेरी नज़रों से देखा करते थे दुनियाँ को कल तक
अब दुनियाँ के हर शै में तेरे चेहरे नज़र आते है

   - Manoj Kumar

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