#बाली_सुग्रीव_का_युद्ध
#भाग - 1
#बाली
पट हो जाते सब एक ताली में
दस हाथी का बल है बाली में
मुझसे कोई लड़े किसकी आफत ?
आ सुग्रीव ,देखूँ है कितनी ताकत ?
अभी तो , हार के गया है तू
फिर किस मुँह से आया है तू ?
बता तेरे मन में आज क्या है ?
दुबारा आने का राज क्या है ?
तू चीज़ क्या है मै जानता हूँ
अच्छी तरह से पहचानता हूँ
तुम्हारे जैसे कई मैंने देखें हैं
फूलों के जैसे तोड़ के फेंके हैं
क्या कहूँ बिच्छू का डंक है तू
भाई के नाम पर कलंक है तू
अगर जो तू मेरा भाई न होता
तो यहाँ देता दिखाई न होता
चुल्लु भर पानी में डूब मरो
फिर जितना मन उतना लड़ो
तू आया है किसी बहकावे में
तू छला है किसी छ्लावे में
मै कहता हूँ पछतायेगा तू
हार के यहाँ से जायेगा तू
एकबार ये कहने का फर्ज है
तू चल जा वापस ये अर्ज है
तू भी याद रखोगे भाई को
सोचो क्या कहोगे भाई को
चल गदा अपना पीछे लेता हूँ
तुझे और एक मौका देता हूँ
#सुग्रीव
ऐ बाली मै तो लड़ने आया हूँ
पत्नी का बदला लेने आया हूँ
अब फिजूल कि बात ना कर
आ सामने अगर नही है डर !
चिंगारी ने रूप ले रक्खी थी
अब आग तो लगनी पक्की थी
अब समय भी न अवरुद्ध हुआ
भाई से भाई में खूब युद्ध हुआ
कोई नीचे था तो कोई उपर था
पर बाली को अब जरा न डर था
अब एक अलग निशान था उसका
पुष्प माला का पहचान था उसका
अब तो जीत उसी के साथ था
क्योंकि प्रभु का उसपे हाथ था
बाली के पक्ष में तो बला था अब
समय आगे निकल चला था अब
#भाग - 2
प्रभु ने पेड़ का सहारा लिया
वचन को अपना पूरा किया
समय , समय निगल चुका था
तीर कमान से निकल चुका था
सुग्रीव ने साजिश रचा था ये
अब बाली को क्या पता था ये
उचित समय ,पाकर बाली को
एक तीर लगा जाकर बाली को
बाली यह सोचकर परेशान था
तीर के पीछे किसका कमान था
उसने मुड़कर ज्यों पीछे देखा
यही था उसके कर्म का लेखा
नागफनी को खूब खिलते देखा
सुग्रीव को राम से मिलते देखा
गुस्सा में और वह लाल हुआ
सभा बैठी जवाब सवाल हुआ
बाली कि आँखें भर आई थी
अब बात कि बस लड़ाई थी
उसे छल से किसी ने मारा था
पहली बार किसी से हारा था
#भाग - 3
#बाली
ये जीत नहीं ये तो हार है
ऐ राम तुझपर धिक्कार है
साहस था तो सामने आते
कितना ताकत था दिखाते ?
पीठ पीछे से वार किया है
युद्ध नीति शर्मशार किया है
ये मानवता का अपमान है
ये कायरता का पहचान है
कैसे समझे कि नर हो तुम
सुरमा नहीं कायर हो तुम
बाली क्या परिचय बताये ?
है दम तो कोई सामने आये !
मेरे सामने जो भी आ जाये
आधा बल उसका भी आये
छह महीने दबाकर बाजू में
रखा था रावण को काबू में
सुग्रीव का चाल समझ न पाया
जोश में आकर होश गँवाया
तारा का कहना माना होता
तो यहाँ नहीं पछताना होता
कैसे कहूँ किसने मुझे मारा है
सच है , भाई से भाई हारा है
दुख तो आज मुझे इसी का है
यहाँ कोई नहीं किसी का है
जिसपे इतना विश्वास किया है
उसी ने मेरा सर्वनाश किया है
ऐ सुग्रीव! क्या पाठ पढ़ाया है
भातृत्व रिश्ते पे दाग लगाया है
जा सुग्रीव! लेले इस राज्य को
हँसी खुशी रखना साम्राज्य को
हे प्रभु आप तो ये काम न करते
रघुकुल रीत बदनाम न करते
हमने क्या आपसे छल किया
जिस चीज का ऐसा फल दिया
आप तो मर्यादा पुरुषोत्तम हो
तीनों लोक में सबसे उत्तम हो
#श्रीराम
तूने काम किया व्यभिचारी का
बाली तुझपे दोष पराई नारी का
सुग्रीव के पत्नी का हरण किया
तूने नारी के साथ दुष्कर्म किया
चाहे छल से हो चाहे बल से
इसमें कोई अभिशाप नहीं
जो रखता है पराई नारी को
उसे मारने में कोई पाप नहीं
जो इस जग मे जैसा करता है
कर्मों के हिसाब से मरता है
अपनी गलती वहीं क्षय किया
बाली ने प्रभु से विनय किय
#बाली
जो भूल चूक हुई माफ करो
बस मुझपर ये इंसाफ करो
मेरे अंगद को अपने साथ रखो
आशीष दो माथे पे हाथ रखो
अंगद ने श्रीराम के चरण छुए
प्रभु देख यह भाव विह्वल हुए
गूँजने लगी ध्वनि एक समान
सब बोलने लगे जय श्री राम
जय श्री राम जय श्री राम
#मिथिलेश मैकश
#छपरा
Note :-
बहुत पहले की एक बाल रचना। बात तब की है जब मै कविता लिखने की शुरुवात की थी। बस कुछ भाव थे और कुछ टूटे फूटे शब्द थे। फिर भी ये मेरा इतिहास है और इतिहास को कभी भूलना नहीं चाहिए।