जिनिगी ई मेला ह माटी के ढ़ेला ह
खेलत रहऽ हरदम इहो एगो खेला ह
दुख सुख से भरल तामझाम झमेला ह
सभकर ई गुरु हटे चलती के चेला ह
दुनिया के भीड़ में चपाइल अकेला ह
घिचता बोझ खाली अदमी ना ,ठेला ह
No comments:
Post a Comment