Thursday, 30 August 2018

मैं दूर रहता हूँ नजदीकियों से

मैं दूर रहता हूँ नजदीकियों से
क्योंकि कभी कभी
नजदीकियां स्वार्थ बन जाती है
रुठ जाती है, और
मजबूर कर देती है दूर होने पर।
नजदीकियों का एक वक्त होता है
एक वक्त के बाद दूर हो जाती है
नजदीक होना मतलब भी है
और दूर होना स्वार्थ भी है।

गम दूरियों का नहीं
नजदीकियों का होता है
इसीलिए कोशिश करता हूँ
जो नजदीक है, वो दूर न हो
और जो दूर है, फिर नजदीक न हो
क्योंकि
दूर होना नियति है और
ज्यादा नजदीक होना
दूर होने की स्थिति है।

फासलें बताते हैं
दूर कौन है?, नजदीक कौन है?
क्योंकि फैसलों से फाँसले होते हैं
और फासलों से फैसलें
नजदीकियां भ्रम पैदा करती हैं
नजदीक रहने वाले दूर हो जाते हैं
और दूर होने वाले बहुत दूर।

नजदीकियों और दूरियों के बीच
रहने की कोशिश की मैंने
पर हो न सका,
दूरी एक पल के लिए होती है
और नजदीकियां याद रहती हैं
सालों साल, जीवन भर
इसीलिए
मैं दूर रहता हूँ नजदीकियों से
मैं दूर रहता हूँ नजदीकियों से

- मिथिलेश मैकश
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Sunday, 26 August 2018

बहिन के जे कामे ना आईल, उ राखी कवना काम के ?

सुख में सँघाती, दुःख में बईसाखी होली
धरती पे बहिन, पूरनिमा के राखी होली
बरखा आईल बह गइल,
उ माटी कवना काम के ?
बहिन के जे कामे ना आईल,
उ राखी कवना काम के ?

हनुमान हिरदया,बहिन के तियाग देखऽ
जियत घर में, गंगा जमुना परयाग देखऽ
ना राखल जे मुँह के पानी
उ लाठी कवना काम के ?
बहिन के जे कामे ना आईल,
उ राखी कवना काम के ?

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

जियत रहस बहिन, जियत रहस भाई
रउवा सभे के राखी के, अनघा  बधाई

Monday, 20 August 2018

#घर_से_बेघर

#घर_से_बेघर
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जिस दीवाल को घर बनते वक्त
हमने ढ़ोई थी कई कठरा बालू
कई कठरा गिट्टी और
सैकड़ो चिमनी के ईंटे।
नवनिर्मित उस दीवाल को
पौधों की तरह हमने पटाई थी
कई बाल्टियां पानी।

बड़ी बारीकी से हमने देखा था
सीमेंट बालू के मसाले में
पानी और पसीने का मेल।
बाबुजी का गणित
माँ की मेहनत
मजूरे की शक्ति और
राजमिस्त्री का साहुल।

बाबा भी घर बनाने के लिए
घर छोड़े थे
बाबुजी ने भी घर बनाने के लिए
घर छोड़ा था
मैंने भी घर बनाने के लिये
घर छोड़ा है
आज घर स्थिर है, हम अस्थिर
घर, घर पर ही है और
हम घर से बेघर।

पहले डर था, तो घर नहीं था
अब डर नहीं है, तो घर भी नहीं है
घर कोई छोड़ता नहीं है साहब
छूट जाता है
जैसे छूट जाता है बचपना
आ जाती है समझदारी
बढ़ जाती है जिम्मेदारी
छूट जाती हैं गलियां
छूट जाता है गांव

- मिथिलेश मैकश
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PC :Aditya Prakash Anokha

Tuesday, 14 August 2018

लुटे के आजादी बा।

कोर्ट, कचहरी  चले द केस
लुटे के आजादी बा।
लूट लऽ पईसा लूट लऽ देस
लुटे के आजादी बा।

लूटऽ बैंक , भागऽ बिदेश
लुटे के आजादी बा।
ले लऽ करजा, हो जा रेस
लुटे के आजादी बा।

अजब समे, गजब परिवेश
लुटे के आजादी बा।
राकस अदिमी, गउ के भेष
लुटे के आजादी बा।

खादी लोग के देखऽ फेस
लुटे के आजादी बा।
करिया नेता, उजर डरेस
लुटे के आजादी बा।

चलऽता इहे, चली हरमेस
लुटे के आजादी बा।
बनल रहऽ गोबर - गणेश
लुटे के आजादी बा।

अब इहे शेष, इहे विशेष
लुटे के आजादी बा।
'मैकश' बइठ के करऽ गेस
लुटे के आजादी बा।

- मिथिलेश मैकश
  छपरा 

रउवा सभे के पनरह अगस्त के अनघा बधाई।
जय हिंद। जय भारत। जय भोजपुरी

Saturday, 4 August 2018

मुझे अपने दोस्तों का बिछड़ जाना याद आता है

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अगर आपके बिछड़े हुए दोस्त ...याद आते हैं तो

दोस्ती और दोस्ताना ...की यादों को ताजा करने के लिए यह विडियो एक बार देखें

*छोटी छोटी बातों पे रूठ जाना आ याद आता है*
*मुझे अपने दोस्तों का छूट जाना याद आता है*

*खाना वो झपट कर , तेरे हाथ से मिठाई*
*कर लेता था मेरे लिए किसी से भी लड़ाई*
*तेरी दोस्ती , तेरा वो दोस्ताना याद आता है*
*मुझे अपने दोस्तों का छूट जाना याद आता है*

*किसी हसीना के पीछे पीछे उसके घर तक जाना*
*I ❤ U लिखके पतंगे उडा़ना, उसके छत पे गिराना*
*प्रेमपत्र पढ़के सबको सुनाना , वो याराना याद आता है*
*मुझे अपने दोस्तों का छूट जाना याद आता है*

               - मनोज "मधुकर"

Friday, 3 August 2018

मुझे दोस्तों का छूट जाना याद आता है।

छोटी छोटी बातों पे रूठ जाना याद आता है
मुझे  दोस्तों  का  छूट  जाना  याद  आता  है।

हँसना - हँसाना  जिंदगी का ईक हिस्सा था
हर ईक दोस्त का अपना अपना किस्सा था
अरे उन किस्सों का टूट जाना याद आता है
मुझे  दोस्तों  का  छूट  जाना  याद  आता है।

कोई  छूट  गया  है,  कोई  साथ  भी  है
कोई  भूल  गया  है,  कोई  याद  भी  है
उस वक़्त का आज रूठ जाना याद आता है
मुझे  दोस्तों  का  छूट  जाना  याद  आता है।

Thursday, 2 August 2018

सपेरा के हर सांप,नाग ना होला

किस्मत  एतनो  खराब ना होला
बाउर एतनो भी शराब ना होला

जिनगी  एगो  सवाल  हियऽ  हो
जेकर  कवनो  जवाब  ना होला

जहां  मिले  उंहे   सिखल  करऽ
अनुभव से बड़ किताब ना होला

कुछ  लोग  सोचेले , कुछ देखेले
हरेक के दिल में , आग ना होला

नुन  तेल  रोटी आ कपड़ा लाता
गरीब  के  जादा  खाब ना होला

कुछ ढ़ोरऊ त कुछ पनिया होले
सपेरा के हर सांप,नाग ना होला

लामा  दांत तऽ  कुकुरो के होला
नोह बढ़ावे से केहु बाघ ना होला

बात  इंहा चरितर के बा "मैकश"
कपड़ा  के  दाग,  दाग ना होला

#मिथिलेश_मैकश
#छपरा

      #लिखीं_भोजपुरी_पढ़ीं_भोजपुरी
                 #रउवा_बढ़ब_बढ़ी_भोजपुरी