Saturday, 26 May 2018

… यही दिल्ली है

#दिल्ली

सब जानकर भी आज अनजान है दिल्ली
इक छोटे बच्चे की तरह परेशान है दिल्ली

कभी सुनना अकेले में जब होती है दिल्ली
मैंने सुना है रात को दो बजे रोती है दिल्ली

मेरे गांव, मेरी माँ से क्यों खफा है दिल्ली?
सब कुछ छूटा, साली बड़ी बेवफा है दिल्ली

जलती  है,  सुलगती  है,  बुझती है दिल्ली
माँ मैं आ रहा हूँ मुझे बहुत चुभती है दिल्ली

कहीं  ख़्वाब  कहीं  पेट की आग है दिल्ली
कई  सवालों   का   एक  जवाब  है दिल्ली

निर्भया  रोती  है😢😢  देखती  है  दिल्ली
गलियों  में,  सन्नाटों  में  चीखती  है दिल्ली

किधर से आती है किस ओर जाती है दिल्ली
प्लेटफॉर्म से जैसे रेल को छोड़ जाती है दिल्ली

बारिश की पहली बूंद में धुल जाती है दिल्ली
सुबह को मिलती है शाम को भूल जाती है दिल्ली

रात के अंधेरों में शमां से ढक जाती है दिल्ली
सुबह से जगे जगे शाम तक थक जाती है दिल्ली

किसी गरीब मजदूर सा टूट जाती है दिल्ली
गैरों सा मिलती है अपनों सा छूट जाती है दिल्ली

कहीं खुले आसमां के नीचे होती है आधी दिल्ली
कहीं सड़क कहीं चौराहे पे सोती है आधी दिल्ली

जरा देख ये तेरे शहर को क्या हुआ है दिल्ली
कहीं शोर शराबा, कहीं धुंवा धुँवा है दिल्ली

सुकूँ नहीं 'मैकश' , चंद पैसों की रज़ा है दिल्ली
जिंदगी गाँव में है ,काले पानी की सजा है दिल्ली

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

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