Tuesday, 29 May 2018

धरे - धरे में हाथ से ससर गईल जिनिगी

कोइला के धाह में ककड़ गईल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

लईकाई में हमरो बड़ बड़ कहानी रहे
एगो नाय रहे आ छाती भर पानी रहे
आन्ही पानी आईल कबड़ गईल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

जे मन के हिरिख रहे , रह गईल मने में
पर पगलेट अदमी, फंसल रहल धने में
मरलस समे झठहा जस झड़ गईल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

चूरूवा भर साँस बा, घोंट घोंट पिये के बा
एगो जिनगी में,केतना जिनगी जिये के बा
धरे - धरे में हाथ से ससर गईल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

- मिथिलेश मैकश
  छपरा
फ़ोटो साभार : अभिषेक शेखर

Saturday, 26 May 2018

… यही दिल्ली है

#दिल्ली

सब जानकर भी आज अनजान है दिल्ली
इक छोटे बच्चे की तरह परेशान है दिल्ली

कभी सुनना अकेले में जब होती है दिल्ली
मैंने सुना है रात को दो बजे रोती है दिल्ली

मेरे गांव, मेरी माँ से क्यों खफा है दिल्ली?
सब कुछ छूटा, साली बड़ी बेवफा है दिल्ली

जलती  है,  सुलगती  है,  बुझती है दिल्ली
माँ मैं आ रहा हूँ मुझे बहुत चुभती है दिल्ली

कहीं  ख़्वाब  कहीं  पेट की आग है दिल्ली
कई  सवालों   का   एक  जवाब  है दिल्ली

निर्भया  रोती  है😢😢  देखती  है  दिल्ली
गलियों  में,  सन्नाटों  में  चीखती  है दिल्ली

किधर से आती है किस ओर जाती है दिल्ली
प्लेटफॉर्म से जैसे रेल को छोड़ जाती है दिल्ली

बारिश की पहली बूंद में धुल जाती है दिल्ली
सुबह को मिलती है शाम को भूल जाती है दिल्ली

रात के अंधेरों में शमां से ढक जाती है दिल्ली
सुबह से जगे जगे शाम तक थक जाती है दिल्ली

किसी गरीब मजदूर सा टूट जाती है दिल्ली
गैरों सा मिलती है अपनों सा छूट जाती है दिल्ली

कहीं खुले आसमां के नीचे होती है आधी दिल्ली
कहीं सड़क कहीं चौराहे पे सोती है आधी दिल्ली

जरा देख ये तेरे शहर को क्या हुआ है दिल्ली
कहीं शोर शराबा, कहीं धुंवा धुँवा है दिल्ली

सुकूँ नहीं 'मैकश' , चंद पैसों की रज़ा है दिल्ली
जिंदगी गाँव में है ,काले पानी की सजा है दिल्ली

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

Thursday, 24 May 2018

जब भी तुम शरमाती हो

ऐसे जब तुम मुस्काती हो
गजब कयामत ढाती हों

खुद को रोक नहीं पाता मै
जब भी तुम शरमाती हो

छुप जाता है चाँद बदली में
छत पे जब भी आती हो

वो नशा नही है मदिरा में
सुरूर बनके चढ़ जाती हो

कहती हो, याद नही करता
यादों से निकल नहीं पाती हो

मेरी जिंदगी एक दीया है
और तुम उसकी बाती हो

कैसे बयां करू इस रिश्ते को
दिल मनोज का धड़काती हो

                      - मनोज मैकश

Saturday, 12 May 2018

लानत है हमे ऐसी अभिव्यक्ति पर जो सवाल खड़ा करें देशभक्ति पर

क्या मन माफिक अभिव्यक्ति और देशभक्ति दोनों एक साथ संभव है ?
क्या ऐसी परिस्थिति दुनिया के किसी और देश में देखने को मिलती है ?

परन्तु भारत में ऐसी सोच को सही ठहराया जा रहा है उनके समर्थन में लोग खड़े भी हो रहे हैं !
इसी सन्दर्भ में मैंने कुछ लिखने का एक छोटा सा प्रयास किया हूँ

लानत है हमे ऐसी अभिव्यक्ति पर
जो सवाल खड़ा करें देशभक्ति पर

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चन्दन जैसे मसलों पे अब
चुप नहीं रहूँगा मै
जिनको ज्यादा खुजली है
उनसे तो ये कहूँगा मै

देश में रहके देश ग़द्दारी
देखो कितनी हिम्मत है
उनको भेजो पाकिस्तान
जिसे यहाँ पे दिक्कत है

अब जो थोड़ी देर होगी
तो नुकसान हो जायेगा
एक ही भारत में यहाँ
कई पाकिस्तान हो जायेगा

देश का जो हाल है
महाभारत होनेवाला है
उसे हँसा सकते नहीं
जो हरदम रोनेवाला है

संविधान पे जो आँख दिखाये
उनको ये बता दु मै
देशद्रोही कहके उन्हें
घर से बाहर भगा दु मै

भारत में रहकर जो
पाकिस्तान जय करता है
उसको मारो गोली जो
अफ़जल गुरु पे मरता है

भारत में रहने वाले इस
बात को क्युँ भूल जाते हैं
जिसने हमें जन्म दिया
उस बाप को क्युँ भूल जाते हैं

पाले पोसे जिनको हमने
इतना सारा प्यार दिया
हर मुसीबत हर वक्त में
जिनका बेड़ा पार किया

देखो भाई आज उसी ने
दिल्ली में दिल को तोड़ा है
खाना पीना बन्द करो
ये पाकिस्तानी घोड़ा है

पंचवटी की कुटिया में
अब कोई मृग नजर ना आये
लक्ष्मण रेखा खिंच दो तुम
कोई रावण आ ना पाये

बच गए दुर्योधन जो
उनसे ही बदला लेना है
अर्जुन धनुष उठा लो तुम
ये कौरवो की सेना है

कहने की आजादी है तो
छाती ठोक कर कहता हूँ
भारत का मै बेटा हूँ
शत्रु से नहीं मै डरता हूँ

हाथ बढ़ाके हाथ मिलाके
सबके साथ चलना होगा
देश में रहना होगा तो
वंदे मातरम् कहना होगा

देश के भीतर हर जगह
तिरंगा ही तिरंगा होगा
एक है अपना देश तो
बस एक ही झंडा होगा

                      _  मनोज कुमार

Tuesday, 1 May 2018

#टूटना_मुझे_अच्छा_लगता_है

#टूटना_मुझे_अच्छा_लगता_है
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टूटना मुझे अच्छा लगता है
क्योंकि टूटकर ही सृष्टि का निर्माण होता है
टूटना स्वाभिमान है
झुकना आत्मग्लानि है।

टूटना मुझे अच्छा लगता है
टूटने से दर्द होता है
मगर टूटता वही है जो मर्द होता है
जो खरा सोना होता है वही टूटता है।

इसलिये टूटना मुझे अच्छा लगता है
क्योंकि टूटना सौंदर्य है
टूटकर इंसान निखरता है
बिखरकर इंसान सँवरता है।

टूटना मुझे अच्छा लगता है
टूटना सत्य है, शाश्वत है
क्योंकि एक इतिहास टूटता है
तो एक नया इतिहास बनता है।

टूटना मुझे अच्छा लगता है
क्योंकि टूटना कमजोरी नहीं
जुड़ने की मजबूती है।
इसलिए जिसे चाहो, टूट कर चाहो
बिना टूटे, दिल को जोड़ना नामुमकिन है।

- मिथिलेश मैकश
  छपरा