भोजपुरी साहित्य के वट-वृक्ष पांडेय कपिल जी के बैकुंठ गमन के दु:खद सूचना मिलल हऽ। ऊंहा के लोर भरल आँखिन से श्रद्धासुमन अर्पित बा। ऊंहा के बतावल-देखावल राह पऽ भोजपुरिया समाज बढ़त रहे, इ हे ऊंहा के प्रति हमनी के सबसे बड़हन श्रद्धांजलि होई।
बूँद भर पानी के खातिर मन तरस के रह गइल,
उमड़ के आइल घटा हालत प हँस के रह गइल I
जब कि पथरा गइल कब से ई नजरिया हार के,
आज उकठल काठ पर सावन बरस के रह गइल I
हर जगह बालू के पसरल बा समुन्दर दूर तक,
दूर से आइल ई पातर धार फँस के रह गइल I
सोच में बीतत रहल बा जब कि जुग-जुग से समय,
जिन्दगी फाँसी बनल गरदन में कस के रह गइल I
लोग चारो ओर हमरा पर तरस खाइल बहुत,
हाय, करइत साँप अइसन लाज डँस के रह गइल I
- पाण्डेय कपिल
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