Monday, 27 November 2017

ई जिनगी में "मैकश" ,अब आउर का बा?

खाये के मिल जाव त ,मोट पातर चाउर का बा?
जब भूख लागे त फेर , मिठ आ  माहुर का बा?

कबो तन - मन -धन प , ढ़ेर  गुमान  ना कइनी
सब भगवान  के दिहल ह , एमे  राउर  का बा?

हंसी - मजाक ,  सुख - दुख भा  सनेह- दुलार
ई   जिनगी  में  "मैकश" ,अब  आउर  का  बा?

Tuesday, 21 November 2017

रानी पद्मिनी

आन बान वाली बातें ,जिसके मन में चलती हो
पद्मिनी है वो , अस्मत हेतु अंगारों में जलती हो

अरे तुम दो पैसे वाली ,क्या जानोगी जौहर को
चर्चे है अखबारों में ,तुम रोज शौहर बदलती हो

काम नायिका का है ,बनके आईना चरित्र निभाना
पद्मिनी को कैसे समझोगी , बिकनी में जो चलती हो

इसी वक्त के आगे हारा ,विश्व विजयी सिकन्दर भी
टूट जाएगा भ्रम सारा ,तुम किस मुगालते में रहती हो

अभी वक्त है तेरे पास ,भूल को अपनी स्वीकार करो
कर दो खेद प्रकट मनोज , अगर कभी जो गलती हो

                                              मनोज कुमार

Thursday, 2 November 2017

श्रद्धांजली - पांडेय कपिल

भोजपुरी साहित्य के वट-वृक्ष पांडेय कपिल जी के बैकुंठ गमन के दु:खद सूचना मिलल हऽ। ऊंहा के लोर भरल आँखिन से श्रद्धासुमन अर्पित बा। ऊंहा के बतावल-देखावल राह पऽ भोजपुरिया समाज बढ़त रहे, इ हे ऊंहा के प्रति हमनी के सबसे बड़हन श्रद्धांजलि होई।

बूँद भर पानी के खातिर मन तरस के रह गइल,
उमड़ के आइल घटा हालत प हँस के रह गइल I

जब कि पथरा गइल कब से ई नजरिया हार के,
आज उकठल काठ पर सावन बरस के रह गइल I

हर जगह बालू के पसरल बा समुन्दर दूर तक,
दूर से आइल ई पातर धार फँस के रह गइल I

सोच में बीतत रहल बा जब कि जुग-जुग से समय,
जिन्दगी फाँसी बनल गरदन में कस के रह गइल I

लोग चारो ओर हमरा पर तरस खाइल बहुत,
हाय, करइत साँप अइसन लाज डँस के रह गइल I
   
- पाण्डेय कपिल