Friday, 1 February 2019

बूढ़ -पुरनिया के ना होखे से,घर दुआर उदास लागेला

बूढ़ -पुरनिया के ना होखे से,घर दुआर उदास लागेला
जदि माई -बाबु ना होखस त,ई संसार उदास लागेला
बिजली मोटर के जुग मे,पकवा ईनार उदास लागेला
देखऽ,परती रहे धरती त,दियर-बधार उदास लागेला

लइकन के खिलौना ना होखेसे,बाजार उदास लागेला
एकाध सार साली ना होखे त ,ससुरार उदास लागेला
काहे पिया के बाहर जाते,बसंत बेयार उदास लागेला
मरद ना होखस त ,मेहरारू के सिंगार उदास लागेला

बनावटी,देखावटी होखे त,दुरेसे प्यार उदास लागेला
जे मन ठीक ना होखे त,आइल बहार उदास लागेला
चानी प तेल छाप ल त,आदमी बेमार उदास लागेला
जे कमाये आला चल जाये,त परिवार उदास लागेला

गुंग नियन चुप रहला से त,सर संस्कार उदास लागेला
मुहं चोथा लेका क लऽ त,सोनो के हार उदास लागेला
बिना इंसानियत के चर्च मन्दिर, मजार उदास लागेला
बिना ठेठ भोजपुरिया के जिला जवार उदास लागेला

- मिथिलेश मैकश
  #छपरा

#लिखीं_भोजपुरी_पढ़ीं_भोजपुरी
                 #रउवा_बढ़ब_बढ़ी_भोजपुरी

Friday, 28 December 2018

बस माई चाही

बीस बरिस पहिले के उ लईकाई चाही
जब आदिमी कहत रहे बस माई चाही
जे समे माई से बड़, ना कवनों धन रहे
माईये साँस आस,माईये पानी अन्न रहे
माईये मजगुति , माईये घर आधार रहे
माईये से पलिवार ,माईये से संसार रहे
कहीं से आई, माईये के मन जोहत रहे
हम लेटात रहनी , माई रोजे धोवत रहे

ते बारी त सब बा, अदिमी बा सरग में
ते ना रहबे,  त दोसर के पूछी जग में ?
तोर आसीर्बाद बेदाम काजू बा रे माई
तनी छू दे तोरा हाथ में जादू बा रे माई
तोरा  जान में  हमार जान रहे
ई जान से बस अब, इहे चाही
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......

- मिथिलेश मैकश
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(छठ के ठेकुआ, गाँव से दूर एगो मजूबर आ मजदूर अदिमि के आपन बात...बुला असवो घरे ना आ पाइब छठ में😢😢)

ठीक ना लागेला....

ठीक ना लागेला....

ना खटिया,ना ओरचन पाटी
ना दुआरे खोप, मरई, टाटी
ना आँगन, बिनु गोबर माटी
ठीक ना लागेला.....

ना खेतिहर, हर, ना हरवाही
ना तसला, कठवत, कड़ाही
ना फूलहा ना घर में सोराही
ठीक ना लागेला.....

ना खेत,ना रोपाई ना कटनी
ना सोहाई, बोवाई ना पटनी
ना सतुई ना आमे के चटनी
ठीक ना लागेला.....

देखs खाए पिये में कंजूसी
खाली दोसरा  के  चपलुसी
बेखदी मदी के रूसा रूसी
ठीक ना लागेला.....

अगराईल,धधाईल,छहकल
हरफड़ाइल मन के बहकल
ढ़ेर बेजाएं  आ ढ़ेर सहकल
ठीक ना लागेला.....

- मिथिलेश मैकश
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Monday, 24 December 2018

आज का दौर

ये 2018 का दौर है....ये दौर है, मैग्गी माइंडेड लोगों का। जहाँ पब्लिक के पास मात्र दो मिनट है पब्लिक के लिए। जहाँ 1 मिनट 31 सेकेंड होते ही जनता 100 डिग्री सेल्सियस के ताप पर बॉयल होना शुरू कर देती है और 1 मिनट 59 सेकेंड होते ही रिलेशन का ताप शून्य से नीचे चला जाता है।

ये दौर है मल्टीटास्किंग का, रजनीकांत का.. जहाँ राइट हैंड से डिनर करना है तो लेफ्ट हैंड से मोबाइल सेट पकड़ना है,एक कान से इयरफोन से सुनना है तो दूसरे कान से लोगों को सुनना है। ये दौर है एक्ट्रीमली हेक्टिक शेड्यूल का जहाँ बाईक पे पीछे बैठ के व्हट्सएप, फेसबुक रिप्लाय करना है तो मेट्रो में खड़े खड़े डेटा ट्रांसफर करना है, एंड्रॉयड अपडेट करना है। ये दौर कॉन्टेक्ट्स सेभ करने का दौर है, वीडियो सेभ करने का दौर है...लाइफ सेभ करने का नहीं।ये दौर है, दौड़ने का.. जहाँ रुकना मना है और सुबह से शाम तक भागना है।

हम उस दौर में जहाँ सभी अपने भी है और कोई अपना भी नहीं है। ये वक़्त है उस दौर का जहाँ बात बनाने के लिए हजारों बातें हैं और दिल बहलाने के लिए एक भी बात नहीं है। ये दौर है गिरगिट का, कलर चेंजिग का,टोपी पहनाने का, हुशियारी का, अपना उल्लू सीधा करने का। जहाँ मुफ़्त में लोगों को हर चीज चाहिए और क़ीमत में कुछ नहीं। ये दौर है निठल्लेपन का, जुमलेबाजी का,बात बेचने का  और सपने बेचने का। ये दौर चोर का है, शोर का है। जहाँ करने को कुछ नहीं है और हल्ला करने को बहुत कुछ है।

ये दौर है छद्म देशभक्ति का, शो ऑफ का, मार्केटिंग का, बिजनेश का,रुपये का। जहाँ फ्लैग और स्वैग पे राजनीति है और बिल्ली आराम से दूध पीती है। ये दौर लस्सी, छाछ, जूस का नहीं, चापलूस का है। ये दौर है, मुद्दे का ,विषय का, जहाँ एक भी विषय नहीं है मुद्दे का।

- मिथिलेश मैकश
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Tuesday, 13 November 2018

बाबा ! आज रहतऽ त केतना आछा होइत

#बाबा_आज_रहतऽ_त_केतना_आछा_होइत
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कहीं से अइतऽ त दू चार गो पाई देतऽ
रोवती तऽ चुप कराये ला मिठाई देतऽ

घुघुआ  माना  खेलइत अपना गोदी में
बइठाके हाथे खिअइत अपना गोदी में

कइसे भुलाई केतना हमें मानत रहलऽ
ठंडा लागत रहे त गाती बान्हत रहलऽ

हम जानीले हमें छोड़ के ना जइबऽ तू
हमरा बिस्वास बा कि  फेरु अइबऽ  तू

बजारी से जाके एगो पुतुल लिया द तू
सोनचीरईया के , काथा फेर सूना द तू

तहार सनेह के भाषा हम पढ़ ना पवनी
अखरेला कि जादा कुछ कर ना पवनी

काश जवन सोच तानी फेर से साचा होइत
बाबा ! आज  रहतऽ त केतना आछा होइत

Sunday, 11 November 2018

माँ - माई

बीस बरिस पहिले के उ लईकाई चाही
जब आदिमी कहत रहे बस माई चाही
जे समे माई से बड़, ना कवनों धन रहे
माईये साँस आस,माईये पानी अन्न रहे
माईये मजगुति , माईये घर आधार रहे
माईये से पलिवार ,माईये से संसार रहे
कहीं से आई, माईये के मन जोहत रहे
हम लेटात रहनी , माई रोजे धोवत रहे

ते बारी त सब बा, अदिमी बा सरग में
ते ना रहबे,  त दोसर के पूछी जग में ?
तोर आसीर्बाद बेदाम काजू बा रे माई
तनी छू दे तोरा हाथ में जादू बा रे माई
तोरा  जान में  हमार जान रहे
ई जान से बस अब, इहे चाही
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......
माई जिनिगी भर तोरा भिरिये
रही, भगवान से बस इहे चाही.......

- मिथिलेश मैकश
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(छठ के ठेकुआ, गाँव से दूर
एगो मजूबर आ मजदूर अदिमि के
आपन बात...बुला असवो घरे ना आ पाइब छठ में😢😢)

Wednesday, 24 October 2018

जय होखे सरकार के.......

बम्बे दिल्ली भागत भागत
जनता थाकल हार के
बन्दा धंधा का करी ? 
ना सोर्स बा रोजगार के
निंन में सरकार बिया
यू पी भा बिहार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

देसे में निकासी होता
काड़ल जाता मार के
बढ़िया से स्वागत होता
गंगा जल से ढार के
दवा बीरू होता देखs
दरद आ बोखार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

गारी सुने गरजे आदमी
चलत बा सम्हार के
छाती भारी भइल बा
नस फाटता कपाड़ के
मातल बारे नेता लो
अंग्रेजी दु पेग मार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

केकर सवख लागल बा?
जे छोड़े घर परिवार के ?
पेट के आग बुतावल जाता
आँखि से लोर ढार के
ऊँख नीयन पेरा त लो
नेमु के जइसे गार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

छोड़ के काहे जाएब हम
इंहा बात बा संस्कार के
संविधान से बड़का केहू ना
हम छोड़ब ना अधिकार के
बांध के इंहा लिलारी घूमेम
ललका गमछा झाड़ के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

सरकार से निहोरा बा
कुछ करे हई रोजगार के
भाषण बाजी बन करा
अंग्रेजी चार लाइन मार के
ठीक ना लागे आदिमी
घूमsता हाथ पसार के
लोग जिये भा मरे बाकी
जय होखे सरकार के
जय होखे सरकार के.......

- मिथिलेश मैकश
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