Sunday, 18 February 2018

मरद के बस के बात नइखे, मेहरारु बनल।

हम सोचिला हो
रोज सुतेलु, सुतला के बाद
आ उठ जालु, उठे से पहिले
कि लोग का कही ?
आ इहे 'का कही के चक्कर में'
तू बन जालु मेहरारु
जवन काल तक रहलु
एगो नाया नोचर कनिया।

हम सोचिला हो
कि कइसे पार लागेला ?
एक हाथ से आँचर
एक हाथ से रोटी
याद कइसे रहेला ?
तरकारी में डाले के बा निमक
एक गिलास चाउर में
दु गिलास पानी।
हम सोचिला हो
कि तू सोचेलु बहुते
कुछू  कहे से पहिले
पढ़ लेबिला तहार मन के भाव
ससुरार के काम धाम में
रह जाता तहार नईहर के बात।

हम सोचिला हो
हमार आठ घण्टा के ड्यूटी से
जादा बा तहार बिना घण्टा के ड्यूटी
मुंह चलावल से
भारी होला घर चलावल।
साँचो हमरा मोह लागेला
तुहूँ त एगो जीव हउ
आदमी हउ, कवनो मशीन ना !
हफ्ता के सातों दिन बा
बाकि तहार एतवार कहाँ बा ?

हम सोचिला हो
केतना मजबूत बारु लो करेज के
माने के पड़ी ताहरा लो के हिम्मत
गजब के बा माइंड सेटप
सह जालु लो हर कुछ बिना कहले
हम सोचिला हो
केतना तप त्याग बा तहरा लो में
धरती के उपमा हम का लिखीं  ?
बस एतने जान लs
मरद के बस के बात नइखे, मेहरारु बनल।

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

Thursday, 8 February 2018

#लोर

#लोर

लोर में होला खून के रिश्ता
बिना सवारथ के जवन
आँखी से ढरक जाला
जब केहू अपने
आपना से दूर हो जाला
त पपनी के कोर से
केहू के ईयाद में
छलक जाला अइसे
जइसे छलक जाये
जान तरहथी से ।

लोर धो देबेला
आँख में जमल मइल
पिघुला देबे कठोर करेजा
हो जाये खड़ा रोवाँ
लोर के रंग एतना साफ ह
कि लउक जाला सभकुछ
बिना कइले सिकाइत
मान के आपन गलती
टुघुर टुघुर के
झड़ जाये आंख से मोती।

सभके दरद जानेला लोर
लोर के दरद केहु ना जाने
लोर के एक बुन से
उतरा जाये समुन्दर
लोर के टप के आवाज से
टूट जाले करेजा
लोर के बिटोरइला से
भर जाला आंख
आ लोर के रोकला से
हो जाला छाती भारी।

टघरत टघरत जब
सूख जाला आंख से लोर
त पड़ जाला एगो दागी
जवन छुवला प
लागेला अजबे
लउकेला एगो सच्चाई
लिआ देबे ला तूफान
जब रह जाला आँखी में लोर
मन हलुका हो जाला
जब बह जाला आँखी से लोर।

- मिथिलेश मैकश
  छपरा

Saturday, 3 February 2018

बाहरा में रहेला आदिमी

बाहरा में रहेला आदिमी

एक भोरे  के निकलल
राती खा चहूपि स रूम प
भोरे  आला रोटी के गरमा के
ओमे नून तेल लगाके
दवाई नियन दु  टाईम
खा लेबीला जा  खाना
डेढ़ इंची के कांटी प
टँगा जाला करीयाका कुर्ता
जवन धोआईल नइखे
एक हफ्ता से
ओभर टाइम के चलते
पईसा के चलते
लाचार थाकल मन से
भहरा जानी जा भुइंया
जईसे गाय भइंस
बन्हा जाली स खूँटा  में

बाहरा के पानी
गला देलस जवानी
राहता भर इहे सोचीला
पता ना काहे हो
सूख जाला आदिमी
बाकी सूखे ना गमछी
पानी से भींजा भींजा के
लटिया जाता मूड़ी के बार
तवातीया इंतिजार में
अयनक शीशा ककही

करिया  के मारे
चमकता तकिया के खोल
छ्ज्जी प से गिर के
पचक गइल बिया तसली
चार गो टेढ़बढ़ऊ ईंटा प
रखाइल बिया जिनगी
जिनगी भर जइसे
साथ छोड़ी ना ई  छीपा
दस गो सिंक बच गइल बा
नरियर के झाड़ू में
दाँत चियार देले बा जइसे
कोलगेट के बुरुस

बाहरा में
बड़ी जल्दी हो जाले सुभे
हासिल के भाग नियन
कटे नाही रात
धीरे से हो जाला अन्हार
तेजी से जर जाले बम्बती
सैकड़ा से आगे ना भागे
कबो पईसा के गणित
किसमत के दहिने
खिसिआइल बा जीरो
कर्जा मांगी मांगी
सिखनी हासिल के घटाव
जिनगी में होई कहिया
हासिल के जोड़

एगो प्लास्टिक के बाल्टी
लोटा गिलास
पांच लीटर के गैस
पांच किलो चाउर
पांच किलो आटा
लेवा चटाई के साथ
घर बार छोड़ के
पाई पाई जोड़ के
बाहरा में रहेला आदिमी

- मिथिलेश मैकश
  छपरा