हम सोचिला हो
रोज सुतेलु, सुतला के बाद
आ उठ जालु, उठे से पहिले
कि लोग का कही ?
आ इहे 'का कही के चक्कर में'
तू बन जालु मेहरारु
जवन काल तक रहलु
एगो नाया नोचर कनिया।
हम सोचिला हो
कि कइसे पार लागेला ?
एक हाथ से आँचर
एक हाथ से रोटी
याद कइसे रहेला ?
तरकारी में डाले के बा निमक
एक गिलास चाउर में
दु गिलास पानी।
हम सोचिला हो
कि तू सोचेलु बहुते
कुछू कहे से पहिले
पढ़ लेबिला तहार मन के भाव
ससुरार के काम धाम में
रह जाता तहार नईहर के बात।
हम सोचिला हो
हमार आठ घण्टा के ड्यूटी से
जादा बा तहार बिना घण्टा के ड्यूटी
मुंह चलावल से
भारी होला घर चलावल।
साँचो हमरा मोह लागेला
तुहूँ त एगो जीव हउ
आदमी हउ, कवनो मशीन ना !
हफ्ता के सातों दिन बा
बाकि तहार एतवार कहाँ बा ?
हम सोचिला हो
केतना मजबूत बारु लो करेज के
माने के पड़ी ताहरा लो के हिम्मत
गजब के बा माइंड सेटप
सह जालु लो हर कुछ बिना कहले
हम सोचिला हो
केतना तप त्याग बा तहरा लो में
धरती के उपमा हम का लिखीं ?
बस एतने जान लs
मरद के बस के बात नइखे, मेहरारु बनल।
- मिथिलेश मैकश
छपरा
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